गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

व्यंजन विधी : अंगूर के पत्तो के पकोड़े : -रवि रतलामी(मामाश्री) की रसोई से

बात उस समय कि है,जब रवि मामा राजनादगाव मे रहते थे। मैं लगभग ५ साल की थी और आंगन मे खेल रही थी । रवि मामा पता नही कौनसी पुस्तक मे खोये हुये थे। अचानक पेपर वाला आया ओर गॄहशोभा देकर गया। मौसी ने गॄहशोभा की ग्राहक थी और हर महीने पत्रीका आती थी। उस समय मौसी कालेज गयी थी। मामा ने नई पत्रिका देखी और पढन्ना शुरू कर दिया। अब मामा को कौन समझाये कि गॄहशोभा महिलाओ की पत्रीका है। अब हम उनके पत्रिका मनोहर कहानियां सत्यकथा तो नही पढते ना। लेकिन मामा तो मामा ठहरे, वे उसे पढने लगे। पढते पढते उनका ध्यान अगुर के पत्ते के पकोड़े की व्यंजन विधी पर गया। नानी के घर मे अंगूर का पेड़ था। अब हमारे मामा है तो खाने और बनाने के शौकिन । मै भी मामा की संगत मे चटोरी बचपन से ।
मामा ने पूछा "निशी एक नयी चिज खायेगी ।"
मै खेलते खेलते आई और बोली "क्या?"
"अंगूर के पत्ते के पकोड़े ।"
"उसे कैसे बनाते है?"
"चल अपन बना कर देखते है!"
मै मामा के पिछे हो ली चुकि गैस टेबल मेरे उचाई से काफी उचा था ,हमने टेबल की बाजू मे एक स्टूल लगाया और उसपर खड़े हो गये। हमे भी तो देखना था पकोड़े बनते कैसे है।
मामा ने अंगूर के पत्ते तोड़े ,धोये ओर बेसन घोला,उसमे नमक मिर्च प्याज डाला। मै सब देख रही थी। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था। मै तो बस उसे देख रही थी ,और मामा उसे तल रहे थे। मै इतजार मे थी कि मामा उसे कब तले और हम उसे खाय़ें। हमे तो बस खाने से मतलब होता था बाकि तो क्या डल रहा है किसे मतलब बस !
अचानक रसोई मे नानी आई उन्होने पुछा "तुम दोनो क्या कर रहे हो ?"
मैने कहा "नानी चिंता मत करो आपको भी मीलेगा।"
मामा ने कहा "अंगूर के पत्तो के पकोड़े !"
नानी ने सर पकड़ लिया, उन्होने अपनी कभी अंगूर के पत्तो के पकोड़े का नाम भी नही सुना था।
अब मामा के हाथ से बने हुवे अंगूर के पत्तो के पकोड़े तैयार थे। हमने खाया, नानी को भी खीलाया, मौसी ने भी खाया ।
कैसे बने ये हम नही बतायेंगे ,आप खुद बनायें और कैसे लगे हमे बताये।
व्यंजन विधी : अंगूर के पत्तो के पकोड़े



सामग्री-
अगुर के पत्ते -४,५ मिडियम आकार के पत्ते,बेसन १ कटोरी,नमक स्वादानुसार
,प्याज १ छोटा, पिसा लाल मिर्च आधा चम्मच ,१,२ हरी मिर्च बारीक कटे हुवे, तेल तलने के लिये और बेसन फेंटने के लिये पानी
विधी- अगुर के पत्ते को सबसे पहले धो ले,फ़िर १ बडे बर्तन मे बेसन ले,अब इसमे बारीक कटा प्याज डाले,बारीक कटा मिर्च,नमक ,पिसा मिर्च डाले और इसमे पानी डालकर पकोड़े के लिये घोल तैयार करे,
अब कढाही मे तेल करके गर्म करें।
गरमा गरम पकोड़े तले।
टमाटर की चटनी के साथ इसका भोग लंगाये।


कैसे लगे निचे टिप्पणी मे बतायें।

बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

शिक्षिका के रूप मे पहला दिन

यह उन दिनो का सस्मरण है जब मेरी नियुक्ति छत्तीसगढ़ मे शिक्षिका से रूप मे हुयी थी। हम लोग उन दिनो सपरिवार राजनांदगांव मे रहते थे ,लेकिन मेरी नियुक्ति राजनांदगांव से २०० किमी दूर कवर्धा जिले की बोढला तहसील के एक गांव माणिकपूर गांव मे हुयी थी।मुझे राजनांदगांव से माणिकपूर पहुचने मे ६ घण्टे लग जाते थे। २०० किमी की दूरी और ६ घण्टो को , शरीर के अस्थीपंजर हिला देने वाला सफर।
गनिमत यह थी कि बोढला मे मेरे छोटे मामा (रवि मामा से छोटे)रहते थे। बोढला से मुझे बस से १० किमी पोढी गांव जाना था, वहां से सायकिल या बैलगाड़ी द्वारा ५ किमी माणिकपूर स्कूल। रास्ते मे भारतिय ग्रामीण जिवन (आदीवासी जिवन) के दर्शन होते थे। बंदर , सांप और जगंली जानवरो का दिखना आम बात थी।
पहले दिन स्कूल मै अपनी मम्मी के साथ गयी थी। मम्मी वहां के हालात देख कर परेशान थी।
मेरी मुलाकात प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापक से हुई। वही माध्यमिक शाला के प्रभारी थे। उस दिन मेरे साथ दो शिक्षक ओर आये थे। सबसे ज्यादा खुश हमारे आने से प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापक थे,क्योकि पिछ्ले कुछ सालो से दोनो स्कुल का भार था। वो मुझे जल्दी से जल्दी माध्यमिक शाला के प्रभार देने मे लगे थे। पर मैने कहा अभी कुछ दिन बाद लुगी,पहले मुझे सब कुछ समझने दिजिये,कि कैसे स्कुल सम्भालना है।
पहले दिन मुझे याद है,मेरे एक सहकर्मी शिक्षक ने ने कहा "कुर्सी लिजिये मैडम बैठीये"। मै वहा चुपचाप बैठ गई। थोड़ी देर बाद एक शिक्षक और आये। आते साथ उन्होने बच्चो को जोर से आवाज लगाई गई "एक कुर्सी और लावो।" मुझे अच्छा नही लगा ,बच्चो से काम।थोड़ी देर मे मुझसे उन्होने मुझसे पूछा "मैडम चाय लेगी"।चुकि मै मना नही कर सकती थी,मना करने पर उन्हे बुरा लगता ,मैने पुछा बनाएगा कौन,तब उन्होने जवाब दिया "बच्चे और कौन ? यहां चपरासी नही है।"
प्रधानाध्यापक से मैने पुछा " कल कितने बजे आना है ?"
उन्होने कहा "वैसे तो समय तो १०.३० से ४.३० तक का है लेकिन तुम्हे अपना समय खुद तय कर लो। माध्यमिक शाला को मुझे तथा एक और सहकर्मी शिक्षक को सम्हालना रहता था, इसलिये मै शाला जल्दी बंद कर देता था। मेरे पास स्कूल के अतिरिक्त और भी कार्य होते है जैसे जनगणना, चुनाव कार्य, मतदाता सूची बनाना, गरिबी रेखा, राशन कार्ड वगैरह वगैरह। इन सब से समय बचे तो बच्चो को पढा़ दो। दो शिक्षकों से पूरा स्कूल सम्हलता नही इसलिये हम शाला जल्दी बंद कर देते है।"
मैने पुछा "बच्चो की पढायी कैसे होती है फिर ?"
प्रधानाध्यापक "भगवान भरोसे! परीक्षा के समय २ महिने पहले गांव के कुछ बेरोजगार शिक्षित युवक आकर पढाने मे मदद कर देते है! अब तुम आ गयी हो तो कुछ हालत सुधर जायेगी!"
एक दिन ऐसे ही शाम को ४.३० को छुट्टी हुयी, सब अपने घर को चले। पर प्रधानाध्यापक कुछ जरुरी काम करने मे व्यस्त थे। हम लोगो ने देखा वे घर नहि जा रहे है। हम लोग भी उनके साथ रोज उनके काम मे हाथ बटाने लगे। उसके बाद अब उन्हे भी बच्चो को पढाने के लिये समय मिल जाता था।
वहां आसपास के सभी स्कूलो की हालत ऐसे ही थी(है)। हर स्कूल मे जितनी कक्षाये उससे आधे शिक्षक। बच्चो की पढायी मे दयनिय दशा। आठंवी कक्षा मे पहुचने के बाद भी उन्हे ढंग से हिन्दी लिखना पढ़ना नही आता था। गणित, विज्ञान और अंग्रेजी की बात ही मत पुछीये।
चपरासी के अभाव मे शिक्षको ओर बच्चो को सारा काम खुद से करना पड़ता था। स्कूल की साफसफाई, झाड़ू लगाना, पानी भरनासभी कुछ बच्चो करते थे। शिक्षक गण भी अपने निजी कार्य जैसे चाय बनाना उन्ही से करवाते थे।
स्कूल की हालत देख कर रोना आता था। ऐसे मे एक दिन मैने बच्चो से कहा कि कल स्कूल मे रंगोली की प्रतियोगीता है। सभीको तैयारी करके आना है।
दूसरे दिन बच्चो को देखकर मै हैरान ! बच्चे अपने साथ स्केच पेन और रंगीन पेंसील ले कर आये थे। उन्हे चित्रकला और रंगोली का अंतर नही मालूम था। ऐसे थे ये बच्चे। तब मै खुद जाकर रंगोली के रंग खरीदकर लायी। कुछ बच्चो को घर से चावल का आटा लाने कहा। अब उन्हे कहा कि जो तुम अपनी कापी मे बना रहे हो उसे आटे और रंग से जमीन पर बनाओ।
कुछ बच्चे डर से कुछ नही बना पा रहे थे। लेकिन बाकि बच्चो ने जो कुछ बनाया , वह देख कर मै दंग थी। बच्चो ने अपनी सारी दूनिया जमिन पर उकेर दी थी। रेखाओ और रंगो का एक अद्भूत संयोजन जमीन पर था। मुझे विश्वास नही हो रहा था कि ढंह से हिन्दी नही लिखपाने वाले, २ का पहाड़ा ना जानने वाले ये बच्चे इतनी अच्छी रंगोली बना सकते है।
मेरा मन से अब निराशा दूर हो चुकी थी। ।इनमे प्रतिभा की कमी नही है, जरूरत है इन बच्चो को जरूरत है सही मार्गदर्शन की।

रविवार, 24 अगस्त 2008

एक लघु कथा

"नमक कहां है,अन्शु नमक कहां है?"
"मम्मी वहीं तो है!"
"मुझे प्याज भी नही मिल रहा है,चल आकर बता कहा है ? और जरा मेरे साथ रोटी सेकने मे मेरी मदद कर!"
"मम्मी! मुझे बहुत सारा होमवर्क भी करना है ,बार बार क्यो उठाती हो!"
"अरे लड़की की जात काम नही करेगी तो क्या करेगी ? शाला मे क्या करती है?"
"मम्मी कितनी भी पढाई शाला मे हो होमवर्क तो घर मे ही आकर करना होता है, आज मै कुछ नही कर सकती मुझे बहुत सारा होमवर्क करना है!"
"अब बहाने मत बना काम के समय ही तुझे पढाई दिखता है सारा दिन क्या करती है?"
"मम्मी आप मुझे समय दोगी तो मै पढुंगी ना! सुबह उठो, पानी भरो, रोटी बनावो फ़िर ट्युशन जाओ! वहां से आओ शाला जाने को तैयार हो ,फ़िर ५ बजे शाला से आओ और ट्युशन जावो,फ़िर रात का खाना बनवो ओर सबको खाना खीलाओ। घर मे कौन सी चिज कहां रखी है वो सब मुझे इस होमवर्क से ज्यादा मालूम है। धनिया मिर्च मसाला सब पता होता है ,पर कब क्या पढना है वो याद नही है?"
"लड़की की जात जबान चलाती है? चल चुप चाप काम कर !"
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"निता कैसी हो?"
"अन्शु, आजकल तुझे क्या हो गया है? कल शाला क्यो नही आयी थी ?"
"कल मेरे यहा काम वाली नही आइ थी काम कर रही थी !"
"क्यो मम्मी क्या कर रही थी?"
"मम्मी नौकरी करती है ना!"
"पर अन्शु तेरी पढाई ,पहले तु कक्षा मे प्रथम आती थी। अब तो तु क्या कर रही है ?"
"निता, समय निकाल कर पढती हूं पर घर का इतना सारा काम होता है, सारा समय वहीं चला जाता है,काश मै पहले जैसे छोटी होती कोई काम नही होता सारा दिन पढाई करती होती।"
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"मम्मी मुझे इंजीनियरिंग करनी है, फार्म भरने पैसे चाहीये।"
"कोई इंजीनियरिंग नही करना है, लड़कियो को बाहर पढने भेजना हमारे बुते की बात नही हओ। हमारे पास इतना पैसा नही है। फिर तेरी शादी भी करनी है, बहुत पैसा खर्च होगा। चुपचाप बी ए कर! ज्यादा से ज्यादा बी एस सी कर ले।"
"मम्मी लेकिन भैया इंजीनियरिंग करेगा तो मै क्यो नही ?"
"वो लड़्का है , तु लड़की है। तु इंजीनियरिंग करेगी तो तेरे लिये लड़्का भी तो इंजिनियर ढुंढना पड़ेग।इतना पैसा नही है हमारे पास। अब रोना धोना छोड़ ! भैया अभी क्रिकेट खेल आने वाला होगा। उसके लिये चाय बना। "

सोमवार, 11 अगस्त 2008

पहला चिठ्ठा

आज ऐसे ही बैठे बैठे सोचा की हमारे मामा तो हिन्दी चिठ्ठा जगत के पितामह हैं हमने भी सोचा की चलो हम भी चिठ्ठा लिखें और हम आ गए अपना चिठठा लेकर
अब जब भी मन होगा तो हम भी कभी कभी अपने मन की भड़ास निकाला करेंगें। अब आपको झेलना है झेलिये ! अच्छा लगे तो टिप्पणी भी दिजीये !
अभी के लिये सभी को हमारी राम राम !