रविवार, 8 मार्च 2009

शिक्षिका के रूप मे स्कूल आवागमन

मै पहले ही बता चूकी हूं कि मैं छत्तीसगड़ के कवर्धा जिले के दूरदराज के गांव के मानिकपुर के स्कूल मे पढ़ाती थी। अब मै आपको बता रही हू कि मै स्कूल आवागमन कैसे करती थी।
पहले दिन स्कूल मै अपनी मम्मी के साथ आई थी। उस समय बारिश का मौसम था, उस दिन स्कूल हम एक जीप से गये थे। स्कूल जाते समय जीप की जो हालत हो गयी थी उसे देख कर मुझे समझ नही आरहा था कि मै अपनी स्कुटी कैसे चलाउगी। मुझसे ज्यादा चिन्ता मम्मी को हो रही थी। वो मुझे इन खस्ताहाल सड़्को पर स्कूटी किसी हालत मे चलाने नही देना चाहती थी।
तब मम्मी ने कहा कि "यहां पर तुम साईकिल से ही स्कूल आना जाना करो।"
लेकिन मैं स्कूटी की ज़िद करने लगी थी ,पर मम्मी के सामने मेरी एक ना चली। सोचा चलो साईकिल ही चला लेते है।
रास्ता पहली बार देखा था पहले बस से १२ किलो मिटर पोडी गांव तक आओ, उसके बाद ५ किलोमीटर साइकिल से स्कूल जाना होगा। लेकिन क्या करे ? नौकरी करनी है तो करना तो पड़ेगा ही।
मेरे साथ एक सहकर्मी अध्यापक थे, वो पोडी गांव मे ही रहते थे। मैने उनसे कहा कि "अभी रास्ता ठीक से देखा नही है, पोडी से आपके साथ कुछ दिन जाउगी"
उन्होने कहा "ठीक है।"
अब हर दिन हम अपनी प्यारी फ़िलफ़िलि रेजर साइकिल से और मेरे सहकर्मी अपनी साइकिल से स्कूल जाते थे। पहले ही दिन वो मुझे रास्ते मे सब बताते जा रहे थे। अचानक एक ट्र्क मेरे सामने आया और मैंने साइकिल सड़क के नीचे उतार दी। ट्रक जाने के बाद जैसे ही मैने साइकिल उपर लायी,संतुलन बिगड़ा और धड़ाम ! हम निचे साईकिल हमारे उपर।
हमारे सहकर्मी घबरा गये। मानिकपूर उनके मामाजी का गांव था। उन्हे गांव मे डांट पड़्ने की आशंका थी। "कैसे इंसान हो मैडम का ध्यान भी नही रख सकते क्या ?" गुरूजी की इज्जत का फालूदा बन जाने का डर था।
मेरे माथे से खुन बहने लगा था। लेकिन मुझे और सहकर्मी अध्यापक को लगा कि चोट गहरी नही है। हम स्कूल की ओर पैदल ही चल दिये। स्कूल पहुचने पर मेरे सर मे दर्द बढ गया। कुछ समझ नही आ रहा था कि मै क्या करूं।
प्रधानअध्यापक जी स्कूल पहुंचे। उन्होने चोट पर टींचर आयोडीन लगाया। मैने उनसे कहा कि मुझे घर वापिस जाना है।
तब उन्होने गांव से किसी को बुलाया ओर मुझे घर तक छोड्ने को कहा।
मैने पूरी तरह ठीक होने के बाद ही दूबारा स्कुल जाना शुरू किया। पर उस सडक से ऐसे डरने लगी कि जैसे कोइ भुत हो। हमेशा के लिये एक डर सा बैठ गया मेरे मन मे। मै ही नही मेरे सहकर्मी और प्रधानाध्यापक भी मेरी साईकिल चलाने से डरते थे। जब हम लोग साथ मे आते थे,वो लोग मुझे बच्चो की तरह समझाते थे।
"अब साइकिल धीमी करो।"
"देखो सामने मोड़ है।"
"साइकिल से उतर जाओ, ट्रक आ रहा है।"
"ब्रेक लगाओ"
"घन्टी बजाओ"
स्कूल जाने की ये तो आधी कहानी है। साईकिल की सवारी से पहले मुझे १२ किमी बस की यात्रा भी करनी होती थी।
बोडला मे मेरी बुआ और बोड़लासे ५ किमी दूर बांधाटोला मे मेरे मामा (रवि रतलामी के छोटे भाई) रहते थे। मै मामा के घर मे रहती थी। मामा को सरकारी आवास मीला हुआ था। आवास के हाल बूरे थे। मामा तो विद्युत इंजीनियर थे लेकिन उनके घर मे दो सीवील इंजीनियर और थे ४ साल के मुदित और १ साल की रूनझुन। घर के प्लास्टर और दिवारो पर दोनो ने अपनी इंजिनियरींग की हुयी थी। मुदित के हथोड़े से पूरा घर हिलता था। और रूनझुन दिवारो पर पेंसील,कोयले और नाखुनो से नक्शे बनाती रहती थी। बांधाटोला मे रहने के लिये एक तो अच्छे घर नही थे दूसरे मामा का कार्यालय पास ही था, इसलिये मजबूरी मे वहीं पर रहना पड्ता था
मै अपने स्कूल के लिये सुबह ९.१० बजे निकलती थी। वहा पर १ बस उसी समय आती थी जो १२ किमी दूर पोडी जाती थी। १२ किमी के रास्ते के लिये बस कभी आधा घन्टा कभी पौन घन्टा लगाती थी। प्रायवेट जीप सेतो पूछीये ही मत ,वो तो एक घण्टे से लेकर २ घण्टे भी ले सकती थी। जीप के अंदर जितनी सवारी आ सकती हो उससे दूगनी सवारी लटकती हुयी जब तक सवार ना हो जाये हिलने का नाम ही नही लेती थी। लेकिन इन सबके चलते मुझे स्कुल १०.३० को पहुचना रहता था। पोड़ी के बाद हम और हमारी साईकिल।
अब वापिसी के हालात पुछीये ही मत। घर सही सलामत पहुंच जाओ वही गनीमत। स्कूल से साइकिल से पोड़ी पहुंचो। उसके बाद बस या जीप का इंतजार। कभी आधा घंटा , कभी एक घंटा। उसके बाद बस या जीप के चलने का इंतजार। ड्रायवर या क्लीनर का चिल्लाना "बस एक और सवारी मील जाये, चलते है।"
ऐसे मे एक दिन अचानक पता चला कि बोड्ला मे सड्के बन रही है। मेरे खुशी का ठीकाना ना था। जीप वाले भी कह रहेथे "अब तो दस मिनिट मे पोड़ी पहुंच जायेंगे। मैने ये खुशखबरी मामी जी को दी मामी जी भी खुश हो गई।
अब सड्को के बनने का काम चालु हुवा , सड़क बन भी गयी। उदघाटन भी हो गया। सामान्यत: सड़के निर्माण के बाद महिनो टीकी रहती है। लेकिन ये सड़क बनने के २ दिन बाद पहली बारीश मे बह गयी। निर्माण से पहले सड़क पर कही कंही कोलतार दिखायी देता था, अब वह भी दिखना है बंद हो गया। सड़क पर मिट्टी और गड्डो के अलावा और कुछ नही था। पहले सड़क मे गड्डे थे, अब गड्डे मे सड्क थी।
एक दिन रोज की तरह मै मै ९.१० को सुबह घर से निकली ओर बस का इतंजार करने लगी । उस समय बारीश का मौसम था हल्की बुदां बांदी भी चालु हो गयी थी। बस स्टैंड पर इंतजार करते हुये एक घंटा हो गया, बस नही आयी।
मै वापस घर गई और मामाजी से बस स्टैंड छोड़ देने कहा।शायद वहां से मुझे कोई जीप या बस मिल जाये। मामा जी के साथ मै बस स्टैंड गई वहा पर १ ही जिप थी। जिसमे कुछ लोग सवार थे। लग रहा था शायद जाने वाली हो क्योकि इन लोगो सवारी भरने के चक्कर मे और समय लगता है। मजबूरी मे मै उसी मे जाकर बैठ गई । जिप वाले ने पुछा कहा जाना है? मैने कहा मुझे पोडी जाना है। जीप वाले ने कहा ये गाडी अब पोड़ी के रास्ते से ना जाकर दूसरे रास्ते भोरमदेव से जायेगी। पोड़ी के रास्ते की सड़क खराब हो गयी है,जगह जगह पर गड्डे है इस्लीये अब गाडी भोरमदेव रास्ते से कवर्धा जाती है।
डाइवर ने मुझे बताया "वहां एक और एक जीप खड़ी थी है जो पोडी जा रही है। लेकिन किराया सामान्य किराये से दूगना ले रही है। जाना है तो उसमे बैठ जावो।"
मै सोचा क्या करें, स्कूल जाना तो है, भले ही दूगना किराया देना पड़े। अब क्या उस पर मै बैठ तो गई पर उसमे सवारी भरने समय तो लगना ही था। वहां से जीप निकलते आधा घण्टा और लग गया। लेकिन मुसीबत अभी खत्म नही हुयी थी। जैसे ही गाडी आधी रास्ते मे पहुची, विपरीत दिशा से दुसरा जिप वाला आया उसने गाडी रोककर हमारी जिप वाले से कहा "आगे मत जावो आगे बहुत गड्डा है गाडी फ़स जायेगी।"
हमारी जिप वाले ड्रायवर ने सभी लोगो को वहीं उतार कर कहा कि गाड़ी आगे नही जायेगी।
वंहा से पोडी ५ किलोमीटर था। मैने सोचा की अब पांच किमी पैदल, उसके बाद ५ किमी साईकिल से। बारह तो यहीं हो गये है। बारीश का मौसम है स्कूल पहुंचते तक तो छूट्टी हो जायेगी। मैने जिपवालो से प्रार्थना की थोड़ा ज्यादा पैसा ले लो लेकिन पोड़ी तक छोड़ दो। लेकिन कोई भी तैयार नही था। मेरे पास कोई चारा नही था। उसी जीप से मै वापिस घर आ गयी।
अब ये एक दिन कि बात नही थी रोज की ही बात थी। जिस दिन मुझे स्कूल जाने का सीधा साधन मिलता था,मै स्कूल पहुंचती थी। जिस दिन साधन नही उस दिन मजबूरन छूट्टी लेनी होती थी।
पता नही अब क्या हाल है वहां सड़को का। शायद अब हालात सुधरे हो। एक बात और मै जिस क्षेत्र की बात कर रही हूं वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र है।