वह अपने मम्मी पापा की मात्र वो इकलौती संतान थी, उसकी माँ इस सदमे के बाद से बात करने के हालत में नही है।
इस तरह की के बाते मैंने समाचार में पढ़ा करती थी। लगता था कि अब ऐसा नहीं होता होगा। आज मै विदेश में हूं देखा यहाँ भी भारतीय समाज मे ऐसे ही समाचार मील जाते है, ऐसी ही ख़बरे, भले ही यहाँ दूसरे तरीके से हो पर यहाँ भी ....
आज सबकुछ बदल रहा है लड़कियों कि पहने के तरीके से लेकर बोलने तक का तरीके। पर समाज में ससुराल और लड़के ये दोनों क्यों नहीं बदल रहे है, क्या वो अपने आप को बदलना नहीं चाहते ?
कहते है लड़की चाहिए! सुन्दर, पैसे वाली, पढ़ी लिखी , नौकरी वाली, घर चलाने वाली ,समझदार......
यह हो भी सकता है पर ससुराल वालो और सबके व्यवहार को देखते हुवे एक लड़की का बदलना निश्चित है और यदि घरवाले सब अच्छे हो तो वो जीवन भर उनकी सेवा करने को तैयार भी रहती है।
पर कोई एक बार भी उस लड़की से पूछे वो क्या चाहती है? बच्चा चाहती है की नहीं? कितने चाहती है? हर फैसले मे चाहे परिवार आगे बढ़ाना हो या नही बढ़ाना हो या तुरंत क्या करना है !
ये सारे फैसले एक पुरुष ही क्यों लेता है? क्या एक ओरत अपना फैसला नहीं बता सकती ?
क्यों एक औरत अपनी जिंदगी का फैसला नहीं ले पाती?
अब भी लग रहा है की जमाना बदल गया है? क्यों वो अपने माँ पापा कि बारे में सोच नहीं पाती ?क्यों उनके लिए कोई चीज पसंद आने पर खरीद नही पाती ?
क्यों आज भी औरत जलायी जाती है ?
कई जगह मैंने देखा है कि दामाद अपने ससुराल में नहीं रुकते! वो ऐसा करना अपने शान कि खिलाफ समझते है ,एक बार भी ये नहीं सोचते की उसकी पत्नी जिंदगी भर उसका साथ देने आई है, क्या उसके ख़ुशी कि लिए अपने ससुराल में नहीं रुक सकते?
क्यों आज भी औरत जलायी जाती है ?
दिनभर सुबह से लेकर शाम तक वो जब अपने ससुराल के अच्छे कि लिए सोचती है तो क्या ससुराल वाले उसके बारे में सोच नहीं सकते?
क्यों उसे बिना कुछ जाने हर बात कि लिए दोषी ठहराया जाता है? उसका दोष ना होते हुए भी हर बात कि लिए दोषी बनाया जाता है?कई जगह मैंने देखा है कि दामाद अपने ससुराल में नहीं रुकते! वो ऐसा करना अपने शान कि खिलाफ समझते है ,एक बार भी ये नहीं सोचते की उसकी पत्नी जिंदगी भर उसका साथ देने आई है, क्या उसके ख़ुशी कि लिए अपने ससुराल में नहीं रुक सकते?