बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

शिक्षिका के रूप मे पहला दिन

यह उन दिनो का सस्मरण है जब मेरी नियुक्ति छत्तीसगढ़ मे शिक्षिका से रूप मे हुयी थी। हम लोग उन दिनो सपरिवार राजनांदगांव मे रहते थे ,लेकिन मेरी नियुक्ति राजनांदगांव से २०० किमी दूर कवर्धा जिले की बोढला तहसील के एक गांव माणिकपूर गांव मे हुयी थी।मुझे राजनांदगांव से माणिकपूर पहुचने मे ६ घण्टे लग जाते थे। २०० किमी की दूरी और ६ घण्टो को , शरीर के अस्थीपंजर हिला देने वाला सफर।
गनिमत यह थी कि बोढला मे मेरे छोटे मामा (रवि मामा से छोटे)रहते थे। बोढला से मुझे बस से १० किमी पोढी गांव जाना था, वहां से सायकिल या बैलगाड़ी द्वारा ५ किमी माणिकपूर स्कूल। रास्ते मे भारतिय ग्रामीण जिवन (आदीवासी जिवन) के दर्शन होते थे। बंदर , सांप और जगंली जानवरो का दिखना आम बात थी।
पहले दिन स्कूल मै अपनी मम्मी के साथ गयी थी। मम्मी वहां के हालात देख कर परेशान थी।
मेरी मुलाकात प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापक से हुई। वही माध्यमिक शाला के प्रभारी थे। उस दिन मेरे साथ दो शिक्षक ओर आये थे। सबसे ज्यादा खुश हमारे आने से प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापक थे,क्योकि पिछ्ले कुछ सालो से दोनो स्कुल का भार था। वो मुझे जल्दी से जल्दी माध्यमिक शाला के प्रभार देने मे लगे थे। पर मैने कहा अभी कुछ दिन बाद लुगी,पहले मुझे सब कुछ समझने दिजिये,कि कैसे स्कुल सम्भालना है।
पहले दिन मुझे याद है,मेरे एक सहकर्मी शिक्षक ने ने कहा "कुर्सी लिजिये मैडम बैठीये"। मै वहा चुपचाप बैठ गई। थोड़ी देर बाद एक शिक्षक और आये। आते साथ उन्होने बच्चो को जोर से आवाज लगाई गई "एक कुर्सी और लावो।" मुझे अच्छा नही लगा ,बच्चो से काम।थोड़ी देर मे मुझसे उन्होने मुझसे पूछा "मैडम चाय लेगी"।चुकि मै मना नही कर सकती थी,मना करने पर उन्हे बुरा लगता ,मैने पुछा बनाएगा कौन,तब उन्होने जवाब दिया "बच्चे और कौन ? यहां चपरासी नही है।"
प्रधानाध्यापक से मैने पुछा " कल कितने बजे आना है ?"
उन्होने कहा "वैसे तो समय तो १०.३० से ४.३० तक का है लेकिन तुम्हे अपना समय खुद तय कर लो। माध्यमिक शाला को मुझे तथा एक और सहकर्मी शिक्षक को सम्हालना रहता था, इसलिये मै शाला जल्दी बंद कर देता था। मेरे पास स्कूल के अतिरिक्त और भी कार्य होते है जैसे जनगणना, चुनाव कार्य, मतदाता सूची बनाना, गरिबी रेखा, राशन कार्ड वगैरह वगैरह। इन सब से समय बचे तो बच्चो को पढा़ दो। दो शिक्षकों से पूरा स्कूल सम्हलता नही इसलिये हम शाला जल्दी बंद कर देते है।"
मैने पुछा "बच्चो की पढायी कैसे होती है फिर ?"
प्रधानाध्यापक "भगवान भरोसे! परीक्षा के समय २ महिने पहले गांव के कुछ बेरोजगार शिक्षित युवक आकर पढाने मे मदद कर देते है! अब तुम आ गयी हो तो कुछ हालत सुधर जायेगी!"
एक दिन ऐसे ही शाम को ४.३० को छुट्टी हुयी, सब अपने घर को चले। पर प्रधानाध्यापक कुछ जरुरी काम करने मे व्यस्त थे। हम लोगो ने देखा वे घर नहि जा रहे है। हम लोग भी उनके साथ रोज उनके काम मे हाथ बटाने लगे। उसके बाद अब उन्हे भी बच्चो को पढाने के लिये समय मिल जाता था।
वहां आसपास के सभी स्कूलो की हालत ऐसे ही थी(है)। हर स्कूल मे जितनी कक्षाये उससे आधे शिक्षक। बच्चो की पढायी मे दयनिय दशा। आठंवी कक्षा मे पहुचने के बाद भी उन्हे ढंग से हिन्दी लिखना पढ़ना नही आता था। गणित, विज्ञान और अंग्रेजी की बात ही मत पुछीये।
चपरासी के अभाव मे शिक्षको ओर बच्चो को सारा काम खुद से करना पड़ता था। स्कूल की साफसफाई, झाड़ू लगाना, पानी भरनासभी कुछ बच्चो करते थे। शिक्षक गण भी अपने निजी कार्य जैसे चाय बनाना उन्ही से करवाते थे।
स्कूल की हालत देख कर रोना आता था। ऐसे मे एक दिन मैने बच्चो से कहा कि कल स्कूल मे रंगोली की प्रतियोगीता है। सभीको तैयारी करके आना है।
दूसरे दिन बच्चो को देखकर मै हैरान ! बच्चे अपने साथ स्केच पेन और रंगीन पेंसील ले कर आये थे। उन्हे चित्रकला और रंगोली का अंतर नही मालूम था। ऐसे थे ये बच्चे। तब मै खुद जाकर रंगोली के रंग खरीदकर लायी। कुछ बच्चो को घर से चावल का आटा लाने कहा। अब उन्हे कहा कि जो तुम अपनी कापी मे बना रहे हो उसे आटे और रंग से जमीन पर बनाओ।
कुछ बच्चे डर से कुछ नही बना पा रहे थे। लेकिन बाकि बच्चो ने जो कुछ बनाया , वह देख कर मै दंग थी। बच्चो ने अपनी सारी दूनिया जमिन पर उकेर दी थी। रेखाओ और रंगो का एक अद्भूत संयोजन जमीन पर था। मुझे विश्वास नही हो रहा था कि ढंह से हिन्दी नही लिखपाने वाले, २ का पहाड़ा ना जानने वाले ये बच्चे इतनी अच्छी रंगोली बना सकते है।
मेरा मन से अब निराशा दूर हो चुकी थी। ।इनमे प्रतिभा की कमी नही है, जरूरत है इन बच्चो को जरूरत है सही मार्गदर्शन की।

20 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अरे वाह, निवेदिता...देखो, कल ही तुमसे बात की और कितना प्रभाव रहा. तुरंत ब्लॉगिंग चालू. अब नियमित लिखो.

अपने अमरीका प्रवास के अनुभव सबके साथ बांतो और सलाह भी दो कि तुम जैसे नये आये लोगों को क्या एतिहात बरतने चाहिये या क्या करना चाहिये, अपने अनुभवो के आधार पर.

बहुत काम का ब्लॉग होगा सबके लिए. शुभकामनाऐं.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

वाह! निवेदिता, बहुत बहुत स्वागत है तुम्हारा भी ब्लागिंग की दुनिया में। जो भी मन में आये लिखो, समय भी कटेगा और मन को भी अच्छा लगेगा।

बच्चों का स्कूल झाड़ू लगाना, या कुर्सी लाना, ये सब मुझे ग़लत नहीं लगते, हाँ शिक्षक को भी समान रूप से इन कामों में भागीदारी होना चाहिये। हाँ बच्चों से अपने निजी काम जैसे चाये बनवाना, ठीक नहीं। पर भारत के कई क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति ऐसी ही है, और ये बहुत दुखद है।

प्रशांत मलिक ने कहा…

achche anubhav hain..

Anil Pusadkar ने कहा…

निवेदिता जी राज्य बनने के बाद हालात कुछ सुधरे हैं,मगर सुधार कि अभी भी बहुत ज़रुरत है। अच्छा लगा आपको पढ कर। आपका स्वागत है।जै छत्तीसगढ्।

दीपक ने कहा…

निवेदिता जी आप छ्त्तीसगढ की है यह जानकर खुशी हुयी !!छ्त्तीसगढ के अधिकांश गावो मे शिक्षा की स्थिती कमोबेश यही है !!पर राज्य बनने के बाद कुछ सुधार अवश्य है !!

घोर अंधेरा भाग रहा है,छ्त्तीसगढ अब जाग रहा है!!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

बोड़ला तब शायद वीरेंद्रनगर विधानसभा में आता था।
पिछले विधानसभा चुनाव के समय इस विधानसभा के 470 गांव मे से मै 220 गांव घूमा था।

वाकई इस पूरे इलाके पर ध्यान दिए जाने की जरुरत है, शिक्षा से लेकर आवागमन सब पर।
पर हमारी राजनीति जो हर बात, हर विभाग हर मुद्दे में घुसी पड़ी है।

रवि रतलामी ने कहा…

वाह! समीर मामा की प्रेरणा काम कर गई. उन्हें भी धन्यवाद. नियमित लिखने के लिए मेरी भी शुभकामनाएँ.

यहाँ मप्र में कोर्ट ने इसी के चलते शिक्षकों से पढ़ाई के अलावा अन्य किसी भी गैर शिक्षकीय कार्य नहीं लेने का आदेश जारी किया था. परंतु स्थिति कमोबेश ऐसी ही है.

E-Guru Rajeev ने कहा…

ऐसा भी क्या भटकना कि कोई अमेरिका पहुँच जाए. :)
अच्छा लगा आपको पढ़ना, अमेरिका कि आबो-हवा के बारे में बताती रहिएगा.
क्या समीर लाल जी आप के मामा हैं !!
मैं तो उनको विलायती फूफा कहता हूँ. :)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

swaagat hai.......
school ke baad yahan ka anubhaw,likh hi daaliye
bahut achha likha hai...........

गोलु श्रीवास्तव ने कहा…

Yanha ki Teachar ki garima ko badate hue ab America me chote bacho ko jama kar ke shicha do thoda shudhar laao.Waise bhi Whana bhi jaruwat hai
:)

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सुंदर आलेख आपका स्वागत है

संतोष अग्रवाल ने कहा…

आपका आलेख प्रेरणादायक है. हमें आपसे एक उम्मीद बंधी है. कृपया निरंतरता बनाये रखें. बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.

सागर नाहर ने कहा…

बहुत बहुत शुभकामनायें निवेदिताजी।
बढ़िया शुरुआत की आपने, मैने भी कई गाँवों में इससे भी बदतर हालत देखी है।
हालत सुधरने के आसार नजर नहीं आते मुझे..
आशीषजी को नमस्ते कहिये, वे हमारे पुराने मित्र हैं।

बेनामी ने कहा…

Nivedita ji,
apne anubhav ko bahut hi achchhi tarah shabdo me dhala hai.
aisi sthiti shayad samast Bharat ki hai,hamare U.P. me to prathmik vidyalay me shayad hi kahi 2 teaher ho, 1 hi teacher k bharose hi vidyalay chalta hai, us par bhi chunao,pals polio, jangadna, madhyan bhojan aur kahi kahi to vidyalay ki yadi nayi imarat banani hai to bah bhi banbani hoti hai,aise me bachcho ki padhi to bhagwan ke bharose hi rah jati hai.

vishal verma

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

niveditaji gramin kshetr ki bal pratibhaon ko mauka mile to unmey apaar sambhavnaein rahti hain. achcha likha hai aapney.

http://www.ashokvichar.blogspot.com

شہروز ने कहा…

आपके रचनात्मक ऊर्जा के हम क़ायल हुए.आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.

समाज और देश के नव-निर्माण में हम सब का एकाधंश भी शामिल हो जाए.
यही कामना है.
कभी फुर्सत मिले तो मेरे भी दिन-रात देख लें.

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/

mere jaana ने कहा…

aasha hai aap bhavishya me jab bhi avsar mile aisi samasya ko dur karne ki kosise karti rahengi....
meri shubhkamnaaye aapke sath hai....
aage bhi apne jivan ke aansh hame batati rahana.
mickey piyush shri.

उन्मुक्त ने कहा…

हिन्दी चिट्टाजगत में स्वागत है।

Unknown ने कहा…

Nishi Didi,Pranam....

Aap ka blog bahut hi achchha hai aur....

alok ने कहा…

bahut accha laga apka anubhav padh kar, lekin ap ye yo bataeye ki apne diploma pahle kiya ki MSc.