गुरुवार, 2 जून 2011

जमाना नही बदला आज भी !

बात बहुत दिन पहले की है अचानक पड़ोसियों के बातचीत से पता चला की मेरे मायके के पड़ोस मे रहने वाली एक लड़की का अपने ससुराल में देहांत हो गया है, उसके ससुराल वालो ने उसे जला कर मार डाला है।
वह अपने मम्मी पापा की मात्र वो इकलौती संतान थी, उसकी माँ इस सदमे के बाद से बात करने के हालत में नही है।
इस तरह की के बाते मैंने समाचार में पढ़ा करती थी। लगता था कि अब ऐसा नहीं होता होगा। आज मै विदेश में हूं देखा यहाँ भी भारतीय समाज मे ऐसे ही समाचार मील जाते है, ऐसी ही ख़बरे, भले ही यहाँ दूसरे तरीके से हो पर यहाँ भी ....
आज सबकुछ बदल रहा है लड़कियों कि पहने के तरीके से लेकर बोलने तक का तरीके। पर समाज में ससुराल और लड़के ये दोनों क्यों नहीं बदल रहे है, क्या वो अपने आप को बदलना नहीं चाहते ?

कहते है लड़की चाहिए! सुन्दर, पैसे वाली, पढ़ी लिखी , नौकरी वाली, घर चलाने वाली ,समझदार......
क्या किसी एक में इतना सारा गुण मौजूद होगा ?
यह हो भी सकता है पर ससुराल वालो और सबके व्यवहार को देखते हुवे एक लड़की का बदलना निश्चित है और यदि घरवाले सब अच्छे हो तो वो जीवन भर उनकी सेवा करने को तैयार भी रहती है।
नौकरी के साथ पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी, उसके बाद शादी होने के तुरंत बाद बच्चा बहुत जरुरी हो जाता है! बच्चा भी यदि लड़की हुई तो और भी परेशानी तुरंत फिर दूसरे का नंबर लगावो, जब तक लड़का ना हो जाये!
पर कोई एक बार भी उस लड़की से पूछे वो क्या चाहती है? बच्चा चाहती है की नहीं? कितने चाहती है? हर फैसले मे चाहे परिवार आगे बढ़ाना हो या नही बढ़ाना हो या तुरंत क्या करना है !
ये सारे फैसले एक पुरुष ही क्यों लेता है? क्या एक ओरत अपना फैसला नहीं बता सकती ?
क्यों एक औरत अपनी जिंदगी का फैसला नहीं ले पाती?
अब भी लग रहा है की जमाना बदल गया है? क्यों वो अपने माँ पापा कि बारे में सोच नहीं पाती ?क्यों उनके लिए कोई चीज पसंद आने पर खरीद नही पाती ?
क्यों आज भी औरत जलायी जाती है ?
दिनभर सुबह से लेकर शाम तक वो जब अपने ससुराल के अच्छे कि लिए सोचती है तो क्या ससुराल वाले उसके बारे में सोच नहीं सकते?
क्यों उसे बिना कुछ जाने हर बात कि लिए दोषी ठहराया जाता है? उसका दोष ना होते हुए भी हर बात कि लिए दोषी बनाया जाता है?
कई जगह मैंने देखा है कि दामाद अपने ससुराल में नहीं रुकते! वो ऐसा करना अपने शान कि खिलाफ समझते है ,एक बार भी ये नहीं सोचते की उसकी पत्नी जिंदगी भर उसका साथ देने आई है, क्या उसके ख़ुशी कि लिए अपने ससुराल में नहीं रुक सकते?
इन सबके चलते भी कुछ ऐसे भी लोग होते है जहां पर बहुवों को बेटियों कि जैसे रखा जाता है और उनको बेटियों कि जैसा भी प्यार दिया जाता है ।
काश हमारा समाज जल्दी ही सुधर जाता और सब बहुओं को बेटियों के रूप मे तथा और बहुवे सास, ससूर को को माँ बाप के रूप में देख पाती!

8 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

अच्छा, ये बताओ कि आशीष अपनी ससुराल में रुकता है या नहीं.
मैं तो अपनी ससुराल में शान से रुकता हूं. आवभगत ज्यादा होती है इसलिए. :)

Ashish Shrivastava ने कहा…

हमारे पैर मे चक्र है, ऐसा ज्योतिषी कहते है! कुण्डली के अनुसार किसी भी जगह((घर/ससुराल/भारत)मे ज्यादा रूकने की मनाही है।

निवेदिता ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
निवेदिता ने कहा…

देखा मामा जी आशीष खुद अपनी पोलपट्टी खोल रहे है,
वजह भले कुछ और हो |

Udan Tashtari ने कहा…

वैसे स्थितियाँ तो पिछले कई वर्षों में सुधार की ओर अग्रसर हैं.....

हमें तो मौका नहीं मिलता वरना हम तो ससुराल में ही जाकर बस जायें. :)

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

समीर जी के ब्लाग से आपके ब्लाग पर आयीं हूँ ... पहला आकर्षण तो हमनाम होने का ही था :)

आलेख भी अच्छा लगा ..... मुझे तो इस समस्या के मूल में सिर्फ़ एक ही बात लगती है कि शादी के बाद भी पति-पत्नी को अलग-अलग ही समझा जाता है ।जिस दिन भी बाकी सब के लिये भी वो एकमना हो जायेंगे ये समस्या नहीं रहेगी ...... शुभकामनायें !

बेनामी ने कहा…

सामाज के इस गलत पहलु पर आपने बहुत ही सूक्ष्म लेख प्रस्तुत किया है| आज भी कुछ परिवारों(खास कर गाँवों) में ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं| सबसे गलत तो यह है की लड़के के अवगुणों के बारे में कभी नहीं पुछा जाता हमेशा लड़की की एक से एक छोटी बात पर नज़र होती है|
ब्लॉग पढकर अच्छा लगा, शुभकामनाएं|

Asha Joglekar ने कहा…

समय के साथ बदलाव तो आ रहा है पर कही कहीं अभी भी ये हादसे.................