मेरे नाना नानी के घर के सामने के घरमे एक परिवार रहता था। पति-पत्नि और पांच बच्चे। घर के मुखिया का नाम तो अब मुझे याद नही लेकिन उसकी पत्नि का नाम था भागी पांच बच्चो मे तीन लड़के थे और दो लड़कियाँ।
मैने इस उनके परिवार को बचपन से देखा था। अमीर तो नही थे लेकिन गरीब भी नही थे। दो वक्त के खाने का इंतजाम था। रूखा सूखा तो नही लेकिन ठिकठाक खाते पिते थे, ठीक ठाक कपड़े पहनते थे। भूखे मरने की नौबत नही थी। दोनो पति पत्नी कमाते थे। बच्चे छोटे थे।
समय अपनी रफ्तार से बीतते गया। कुछ साल बाद बड़े लड़के की शादी हो गई। और नयी पिढी़, नयी हवा का असर बड़े लड़के के विवाह के कुछ महिने बाद ही घर का बंटवारा हो गया। एक हिस्से मे भागी , उसका पति और चार बच्चे दूसरे हिस्से मे बड़ा बेटा और बहु। हम काफी छोटे थे लेकिन् सब दिखायी देता था।
कुछ समय बाद पता चला कि भागी की बड़ी बेटी का विवाह किसी अच्छे घर तय हो गया है। अच्छा लगा। कुछ दिनो बाद शादी भी हो गयी और बड़ी बेटी अपने घर चली गयी।
समय बीतता गया, एक दिन ऐसे ही पता चला कि भागी के पति को किसी समय ’राजरोग’ कहा जाने वाला लेकिन आज का ’गरीब रोग’ टीबी हो गयी है। अब उनके बूरे दिन शुरू हो गये थे। पति काम नही कर पाता था, घर भागी की कमाई की बदौलत चल रहा था। उपर से पति की बीमारी। साथ मे कोढ़ मे खाज जैसे एक बेटे को मिर्गी के दौरे आने लगे थे।तिसरा लडका जो भी कमाता था शराब मे उड़ा देता था। एक लड़की ब्याहने बची थी।
खैर समय का फेर सरकारी अस्पताल के ईलाज से भागी का पति ठीक हो गया। इसी बीच उसके दूसरे बेटे और दूसरी बेटी दोनो की भी शादी हो गई। जैसे तैसे सब ठीक चल रहा कि अचानक भागी के पति को लकवा मार गया। भागी की किस्मत मे आराम कहां ? एक तो बुढ़ापा, उपर से अकेले कमाना और पति की देखभाल। उसके दोनो बेटे अपना ही घर चला ले काफ़ी था। बस जैसे किस्मत उससे रूठी हुयी थी।
मै इस दौरान अपनी शिक्षा के सीलसीले मे गृहनगर से बाहर रही। दो वर्षो बाद पता चला कि भागी ने घर बेच दिया है। वे कहीं और रहने चले गये है। पूछताछ करने पर पता चला कि शादी और बीमारी से कर्ज इतना बड़ गया था कि घर बेचना पड़ा। उसके बाद मेरा ध्यान उस परिवार से हट गया था।
इसी बीच हमारे घर मे एक कार्यक्रम था। उसके दो दिन पहले भागी अपनी छोटी लड़की के साथ हमारे घर आई और पूछा कि "इसके लायक कोई काम हो तो बतावो ?"
तो मैने उसकी लड़की से पुछा "कैसे तु अभी अपने मायके घुमने आई है क्या?"
"नही! मै अपने पति के घर से भाग आई।"
"पति के घर से भाग आई? तो क्या वो अच्छा नही है ? मारता है ? तन्ग करता है क्या ?"
"नही वो तो बहुत अच्छा है। मेरी सास अच्छी नही है! वो बहुत तन्ग करती है। और बहुत काम करवाती है।"
"पति अच्छा है तो वापीस चले जाओ। सब बात पति को समझाओ। वो समझदार होगा तो वो अपनी माँ को समझायेगा!"
मैने आगे कहा "ठीक है। अभी कुछ दिन तु यहाँ काम कर ले। उसके बाद अपने पति के पास चले जाना।"
वैसे भी अभी घरेलु कार्यक्रम के समय हमे काम करने वाली की जरुरत भी थी। दोनो माँ बेटी के पंद्रह दिनरहने खाने का तो जुगाड हो गया था। कार्यक्रम खत्म होने के बाद उन लोगो उनके काम के जीतने पैसे बनते थे दे दिये साथ मे कुछ और पैसे भी दे दिये।उस दिन मुझे अच्छा भी लगा कि चलो हमने उनकी कुछ मदद तो की।
कुछ समय और बीते गया। मेरी शादी भी हो गयी। शादी के बाद मै पहली बार मायके गई तब पापा के साथ मै मन्दीर जाना हुआ। अचानक मेरी नजर भागी पर पडी वो भीखारीयो के साथ भीख मांग रही थी। अब तो उसके हाथ पैर मे उतनी जान भी ना रही थी उसे उसे कुष्ट रोग हो गया था। अब इसे क्या कहेंगे ? पति लकवा ग्रस्त और खुद कुष्ठ ग्रस्त। बच्चे अपनी दुनिया मे मस्त। उसके पास कोइ चारा ही बचा था। अपना ओर अपने पति का पेट पालने के लिये भीख मांगने के अलावा को रास्ता नही था।
मै उसे देख मन्दीर मे मै उसके पास पहुची और भागी करके आवाज दी। पर उसे अच्छा नही लगा। उसे लगा शायद भीख मागते मैने उसे देख लिया हो।
मैने उससे पुछा "कैसी हो?"
उसकी आंखे डबड्बा गई थी। मैने मेरे पास उस समय जितने भी पैसे थे उसे दे दिये और भारी मन से वापिस् चली आयी।
उसके बाद मै अपने ससुराल वापस आ गई। अपनी नयी जिंदगी मे व्यस्त हो गई। और सब कुछ भूल गई
अमेरीका आने से पहले मै फ़ीर मम्मी पापा से मीलने गई। सोचा कि चलो एक बार मंदिर और हो आउं। मंदिर से वापस आते समय मौसम खराब हो गया था। मै ओर पापा जल्दी घर जाने के लीये गाडी के पास आये और घर जाने के लिये निकले। अचनक मेरी नजर सामने चबूतरे पर गयी।
सामने भागी अपने पति जो एक चार पहीये वाली गाड़ी पर खिंचते हुये ला रही थी। वही चबुतरा, खुले आसमान के निचे उसका नया घर था।
3 टिप्पणियां:
रोचक प्रस्तुति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
nice blog Nivedita
छत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल में आपका स्वागत है
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